मनाव जीवन में संस्कारों का सम्बन्ध

मधुरम समय  


मनाव जीवन में संस्कारों का सम्बन्ध                                        


मधुरम समय, देहरादून। हमारे जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। संस्कारों का सम्बन्ध माता-पिता द्वारा दी गई शिक्षा से है। शिशु की शिक्षा-दीक्षा तभी से शुरू हो जाती है जब शिशु गर्भावस्था में होता है तथा मानव शरीर के रूप में निर्माण हो रहा होता है। इतिहास में अभिमन्यु और ध्रुव के उदाहरण कहे जाते हैं। कि इनका गर्भावस्था के दौरान कही गयी बातों का इनके जीवन पर कैसा असर पड़ा था। यदि हम सोचेंते हैं तो मस्तिष्क निमार्ण ऐसी शिक्षा शिशु को दे सकते हैं जो कि  शिशु की सम्पूर्ण जीवन की दिशा बदल सकती है। सामान्यतः मानव जीवन में सही दिशा की पहचान नही होती है। तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर इस वक्त का सही प्रकार से सदुपयोग किया जाता है। तो जीवन अनेकों समस्यायें अपने आप हल हो जाती हैं ।


कहने का तात्पर्य है कि शिशु में विनम्रता,साहस,सेवाभाव जैसे सद्गुण उत्पन्न किये जा सकते हैं। यह समस्त  बच्चे को जन्म देने वाली माता पर निर्भर करता है कि वह इस वक्त का कैसे सदुपयोग करती है। इस समय  माता का जैसा आचारण और दृष्टिकोण होता है वैसे ही गुण उसके गर्भ मंे पल रहे शिशु के भीतर आते हैं। सत्य यह है कि यदि आगे आने वाली पीढ़ी को इस प्रकार के अच्छे संस्कार दिये जाते हैं तो न केवल एक अच्छे समाज की रचना होती है। बल्कि देश के भविष्य को भी सुरक्षित करते हैंै। कहने का तात्पर्य है कि अगर  मस्तिष्क में ऐसे विचार होते हैं तो हम एक बच्चे को नही, बल्कि एक संकल्प को जन्म देते हैं। तथा नई पीढ़ी को मानवीय गुण अपार मात्रा दे सकते हैं।