ज्ञान के साथ विनयशीलता परम गुण है 

मधुरम समय
ज्ञान के साथ विनयशीलता परम गुण है 
'विद्या ददाति विनयम्'
मधुरम समय, देहरादून। विश्व में ऐसे अनेक विद्वान हुए हैं जो विनयशीलता से भरपूर थे। उनकी योग्यताओं का सभी जन आदर करते हैं। उन्ही विद्वानों को अपना आदर्श मानकर आज का युग प्रगति के पथ पर चल रहा है। विद्या के आधार पर राम -रहीम,कृष्ण,रावण,ईसामसीह, हिटलर आदि को विद्वान कहा गया है। लेकिन अन्तर केवल यह है कि किसी की विद्या के साथ विनयशीलता दिखती है, तो कोई अत्याचारी की श्रेणियों में गिने जाते हैं। हम इस लेख में उस विनयशीलता के विषय में कह रहे हैं जो भगवान राम ने समुद्र पार करने से पहले दिखाई थी। रामायण के एक प्रसंग में जिसमें श्री राम ने देखा कि दुनिया का महान विद्वान रावण उनके तीर से मरणासन की अवस्था में है तो उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि भ्राता जाओ विद्वान रावण से ज्ञान प्राप्त कर लो। लक्ष्मण ने भ्राता के कहने के अनुसार  रावण के सिर के समीप जाकर खडे़ होकर कहा, हे रावण श्रीराम ने मुझे आपसे ज्ञान सीखने के लिए भेजा है। इस पर  रावण चुपचाप रहा तथा  वह कुछ ंबोला नहीं। तब लक्ष्मण ने वापस जाकर श्री राम से कहा कि प्रिय भ्राता रावण कुछ बोल ही नही रहा है। तब भगवान राम ने कहा कि हे लक्ष्मण ज्ञान मांगा जाता है किसी से छीना नही जा सकता है। तुम उसके पैर की तरफ जाकर उससे ज्ञान लो , तब लक्ष्मण श्री राम के कहने के अनुसार  रावण के पैर की तरफ खडे हो गये तथा उससे ज्ञान देने की बात कही। तब रावण ने लक्षण को ज्ञान दिया। इस प्रसंग से यह प्रमाणित होता है कि ज्ञान से या विद्या से विनयशीलता आती है तथा विनयशीलता ज्ञान से प्राप्त की जा सकती है।  हम कह सकते हैं कि विद्या के साथ विनय तथा विनम्र के साथ विद्या अवश्य होनी चाहिए। ज्ञानी मात्र होने से व्यक्ति श्रेष्ठ नही होता है। यदि ज्ञान के गर्व सिर ऊंचा उठे तो सही है। परन्तु घमण्ड से सिर उठे तो ज्ञान का विकास रूक जाता है।