मधुरमसमय
संवेदनाओं का नाम ही दया है
मधुरम समय,देहरादून। कोमल मन की संवेदनाओं को ही दया कहा गया है। व्यक्ति में इसकी उत्पत्ति कल्याण भाव से होती है। दूसरों के प्रति दया करने वाला व्यक्ति दीन दुखियों की मदद करता है। उनके दुखों में भागीदार हो जाता है। दयाभाव से प्रेरित व्यक्ति को न तो किसी हित लाभ की आशा होती है और न ही अपनी प्रशंसा की इच्छा होती है। उसको तो किसी दुखी व्यक्ति के होंठों पर मुस्कराहट देखनी होती है। दया सर्वव्यापी भाव है। प्रेमचन्द्र के अनुसार दयालुता दो प्रकार की होती है। एक में नम्रता है। दूसरी मंे आत्मप्रशंसा, नम्रता भाव से की गई दया निस्वार्थ होती है, ऐसे व्यक्ति दया के बदले कुछ भी नही चाहते। लेकिन आत्मप्रसंशा अथवा स्वार्थ भाव से प्रेरित दया में, कल्याण भावना नही होती है। दया करते समय उनकी कल्याण भावना उनके स्वार्थमयी होती है।
जिनमें नम्रता नही आती, वे विद्या का पूरा सदुपयोग नहीं कर सकते।
'महात्मा गांधी'