मधुरम समय
सुख दुख का कारण मनुष्य के कर्म है
मधुरम समय, देहरादून। वैदिक कर्मफल व्यवस्था में एैसा वर्णित है कि मनुष्य के सुख दुख का कारण उसके कार्य होते हैं। मनुष्य जैसा काम करता है वैसा ही फल उसको प्राप्त होता है। ऐसा काम जिससे किसी व्यक्ति का भला हुआ हो उसे ईश्वर सुख देता है और ऐसा काम जिससे किसी व्यक्ति का बुरा हुआ हो उसके बदले उसको दुख मिलता है। माता-पिता अपनी सन्तानों को बुरे कार्यो से हटाकर अच्छे कामों में लगाने की कोशिश करते हैं वैसे ही ईश्वर भी करता है। जब मनुष्य कोई बुरा काम करने लगता है तब उसे अन्दर से भय महसूस होता है और जब कोई अच्छा काम करता है तो उसे आनन्द तथा उत्साह अनुभव होता है। ये दोनों भावनाएं ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त होती हैं। मनुष्य गलत कार्य लालच में आकर करता है। अथर्ववेद में लिखा है मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है। कोई किसी व्यक्ति की जितनी भलाई करता है उसको उतना ही सुख मिलता है और जितना किसी का बुरा करेगा उतना ही दुख मिलेगा। इस प्रकार सत्य के कार्यो से व्यक्ति को सुख मिलता है।
उतना ही काटें जितना चबा सकें, अर्थात् उतना ही काम हाथ में लें, जितना पूरा करने की क्षमता हो।