आत्मिक प्रेम
मधुरम समय,देहरादून। रामकृष्ण परमहंस को गले की बीमारी हो गयी थी अब वह उससे बहुत पीडित थे। एक दिन उनकी पीड़ा असहाय हो गयी थी, लगता था कि अब जीवन जीना मुश्किल है। मां शारदा परमहंश का सिर गोद में रखे हुए थी। उनकी पीड़ा से मां शारदा बहुत दुखी थी। उनके आंसू निकल रहे थे। जब रामकृष्ण को यह आभास हुआ कि वह रो रही है तो वे तुरन्त उठ बैठे तथा दुखी होने का कारण पूछा तब शारदा मां ने कहा कि आप जानते हैं कि जिस ईश्वर भक्त व फकीर के साथ जीवन बिताया और अब वह मेरा जीवन साथी मुझे छोड़कर जा रहा है। यही विचार करते हुए आंखों में आंसू आ गये। रामकृष्ण ने शारदा मां से कहा ठीक है परन्तु तुम्हें यह ज्ञात है कि तुम्हारा तथा मेरा प्रेम मात्र आत्मिक था शारीरिक नही। शरीर नाशवान हैं। आत्मा अजर अमर है। मै अपना रोगों से जर्जरित शरीर अब छोड़ रहा हूं और प्रभु के पास जा रहा हूं तथा तुम्हारा व मेरा मिलन पुनः अवश्य होगा। तुम रोना नहीं और ना ही अपना सुहाग बिगाड़ना। परलोक मेें तुम्हारा स्वागत करूगा। यह उपदेश देकर रामकृष्ण परमहंस ब्रहमलीन हो गये।
आत्मा अजर अमर है। शाश्वत् है। शरीर परिवर्तन-शील है। योगी के लिए मृत्यु कष्ट आध्य नहीं है।