स्वामी विवेकानन्द संस्कृत व चरित्र
मधुरम समय, देहरादून। स्वामी विवेकानन्द जब विदेश गये तो उनकी भगवा पहनाव व पगड़ी देखकर लोगों ने पूछा, स्वामी जी आपका बाकी समान कहां है। स्वामी जी ने कहा बस यही सामान है। यह देखकर कुछ लोगों ने व्यंग्य किया। यह कैसी संस्कृति है आपकी। तन पर सिर्फ भगवा चादर लपेट रखी है। कोट पैंट जैसा कुछ भी पहनावा नही। स्वामी जी ने तब मुस्कुराकर कहा, ‘हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निमार्ण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निमार्ण हमारा चरित्र करता है। संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है।’
‘सभ्यता दिखावे से नहीं चरित्र बल से प्रकट होती है।
रिपोर्टः अनूप रतूड़ी