गलती स्वीकार करना एक सबक है 

गलती स्वीकार करना एक सबक है 
मधुरम समय, देहरादून । गांधी जी के साथ काम करने वाला एक कार्यकर्ता कई गलतियां करता, किन्तु सदा अपनी गलती पर पर्दा डाल देता था । उसे यह कहते सकुचाहट न होती, मुझसे कोई गलती होती ही नहीं । गांधी जी अक्सर हंस देते और कहते गलती स्वीकार करना एक सबक है उसे स्वीकारना एक गुण है । सच्चा-मनुष्य वही है, जो अपनी गलती मान ले और अपना सुधार करे । वह गांधी जी के उपदेश को लोगों तक पहंुचाया करता किन्तु स्वयं उसका पालन नहीं करता था । गांधी जी ने कहा - तुम आज जो गलतियां करो उन्हें सभी के सामने स्वीकार करना । यह सुनकर कांप उठा । वह भयभीत हो गया । वह सोचने लगा कि उसकी इज्जत क्या रह जाएगी, लेकिन बापू की बात टाली नहीं जा सकती थी । शाम को प्रार्थना सभा में जब उसने दिन भर की गलतियों को स्वीकार किया तो उस रात उसे एक नई दृष्टि मिली ।  ‘अपनी भूल को स्वीकारना मानवीय गुण है ।’
रिपोर्ट- अनूप रतूड़ी