सन्त का शील
मधुरम समय, देहरादून । सन्त एकनाथ विनम्रता की मूर्ति थे । कुढ़ने वालों ने षडयन्त्र किया कि जो कोई एकनाथ को क्रूद्ध कर दे उसे पचास मुद्रा पुरस्कार मिलेंगे । एक उद्दण्ड व्यक्ति तैयार हो गया । वह सीधा मन्दिर पहुंचा । जहां एकनाथ अपना जप ध्यान कर रहे थे । वह उनकी पीठ पर चढ़ बैठा और गालियों के साथ घूंसे लगाने लगा । एकनाथ ने पीछे देखा और हंसकर कहा-तुम मेरे सघन मित्र निकले इतना प्रेम से तो कोई छाती से नही मिला था । अब आपको मेरे साथ घर चलकर भोजन भी करना पडे़गा । उपद्रवी गद्-गद् हो गया और लज्जित होकर एकनाथ के पैरों पर सिर रखकर क्षमा मांगने लगा ।
‘सन्त व्यवहार से दुष्ट से दुष्ट का भी हद्य परिवर्तन सम्भव है’
लेखक तथा संकलनकर्ता - स्वामी ब्रहमानन्द सरस्वती ‘वेद भिक्षु’
रिपोर्ट - अनूप रतूड़ी
सन्त का शील