निर्दोष को मत सताना

 निर्दोष को मत सताना 

मधुरम समय, देहरादून। मगध का राजकुमार एक ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहा था। गुरू और शिष्य एक दिन भिक्षा मांग कर लौट रहे थे कि गुरू की छड़ी नीचे गिर गई। राजकुमार छड़ी उठाने के लिए झुका। गुरूजी ने उसकी पीठ पर लात से तीव्र प्रहार किया। प्रहार का कारण पूछने पर गुरू जी बात को टाल गए। यह बात राजकुमार के दिल में कांटे की तरह चुभती रही। कुछ समय बाद जब राजकुमार राजा बना तो उसने महात्मा जी को बुला कर बिना वजह पीटने का कारण पूछा। तब महात्मा बोले - हे राजन तुम्हें मैंने बिना कारण दण्ड दिया, जिसकी याद तुम्हें अब भी सता रही है। गलती करने वाला अपना दण्ड भूल जाता है। पर निर्दोष व्यक्ति अपने दण्ड को नहीं भूलता। अतः कभी निर्दोष को मत सताना। यही मेरी अंतिम शिक्षा है।   

‘न्यायप्रिय राजा चिरायु होता है।’

लेखक तथा संकलनकर्ता: स्वामी ब्रहमानन्द सरस्वती वेद ‘भिक्षु’

रिपोर्ट: अनूप रतूड़ीम

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